Kedarnath Yatra - Panch Kedar Yatra 2020
Kedarnath Yatra 2020
Kedarnath Yatra 2020 : – दोस्तों लॉकडाउन (LockDown) खत्म हुआ और शुरू हुआ सफर घर से बाहर निकलने का। नई नई जगह घूमने का । लगभग 6 महीने एक कमरे में बंद रहने के बाद आखिरकार में बाहर जाने के लिए तैयार हुआ। बड़ी जद्दोजहद के बाद मैंने अपने घर वालों (Parents) को किसी तरह से मनाया और विश्वास दिलाया कि मैं सारी गवर्नमेंट (Goverment) के द्वारा जारी की गई गाइडलाइंस (Guide Lines) को फॉलो (Follow) करुंगा और अपने आप को सुरक्षित रखूंगा । अब सवाल यह था कि कहां जाएं, क्योंकि अभी भारत से सारी इंटरनेशनल फ्लाइट (International Flights) बंद थी ,और जो भी मेरे Valid Visas थे वह सस्पेंडेड (Suspended) थे ,इसीलिए भारत (India) से बाहर जाने का तो कोई सवाल ही नहीं था।
तो अब सबसे बड़ा सवाल यह था कि भारत (India) में ही कहां जाया जाए जो कि इस स्थिति के हिसाब से एक अच्छी जगह साबित हो और सुरक्षित भी हो, और जहां में इंजॉय कर सकूँ । इसके बाद मैंने इंटरनेट (Internet) पर रिसर्च (Research) शुरू की और काफी दिन सर्च करने के बाद मैंने सोचा कि में इस बार पंच केदार (Panch Kedar) (Kedarnath Yatra, Rudranath) के ट्रैकिंग पर जाऊंगा। इससे एक तो जो 6 महीने तक घर पर रह कर जो वजन बढ़ाया है उसको कम करने का एक अच्छा मौका मिलेगा और भगवान भोलेनाथ के दर्शनों का भी मुझे लाभ प्राप्त होगा।लेकिन कोरोना के कारण अभी ट्रांसपोर्टेशन (transportation) भी लगभग सभी जगह अस्त व्यस्त चल रहे थे। और होटल्स(Hotels) की भी बहुत समस्या (Problem) आ रही थी। जब में पंच केदार(Panch Kedar, Kedharnath yatra, Rudranath yatra) के लिए अपना प्रोग्राम (program) बना रहे था, तो मुझे कोई सटीक जानकारी नहीं मिल पा रही थी।
कहां रुके या उस जगह पर कैसे पहुंच सकते हैं,इन सब सवालों का कोई सटीक जबाब मुझे नहीं मिल पा रहा था, और इससे मेरी परेशानी और भी बढ़ रही थी। में जहां भी फोन करता तो बड़े बेतुके से सवाल मेरे पूछे जाते या कहीं मुझे मना कर दिया जाता ।क्योंकि उन दिनों उत्तराखंड के अंदर कोविड-19 खतरनाक ढंग से बढ़ रहा था। इस कारण उत्तराखंड सरकार ने उत्तराखंड में काफी पाबंदियां लगा रखी थी। उत्तराखंड से बाहर से जो भी ट्रवेलेर (traveler) वहां आ रहा था उसका कोविड-19 की रिपोर्ट अनिवार्य कर दी गई थी, और इसके अलावा यह रिपोर्ट 72 घंटे के भीतर की होनी चाहिए थी और उत्तराखंड के बॉर्डर पर कई प्रकार की चेकिंग के लिए पुलिस पोस्ट बना दी गई थी। जहां पर आपको अपने यात्रा का पूरा ब्यौरा (travel itinerary) देना होता था। एक प्रकार से यह सही भी था अगर भगवान ना करे आपको Covid Positive हो जाते हैं, या पाए जाते हैं तो वह एक पूरी चेन (Chain) को आर्टिफाई (identify) कर सके और सभी को वह आइसोलेट (isolate) कर सके जिससे यह क्रम टूटे और बाकि सभी लोग सुरक्षित रहे। जनता ने भी इस चीज को समझा और अपना पूरा सहयोग दिया है। (kedarnath yatra)
इंटरनेट (Internet) पर रिसर्च (Research) करते करते मुझे सारि विलेज (Sari Village) में एक होम स्टे ओनर(Home Stay Owner) का नंबर (Mobile Number) मिला, जिनका नाम उमेन्द्र सिंह जी (Umender Sing) था। उमेंदेर जी सारि विलेज (Sari Village) में एक होम स्टे चलाते है और इसके साथ साथ उन्होंने अभी एक नया रेस्टोरेंट (Restaurant) भी चालू (Start) किया है। इनके पिता (Father) जी भी अपने समय के नामी गाइड रहे है। मेरी उमेंदेर जी फ़ोन पर बात हुई और लॉक डाउन के वजह से उनके पास भी अभी कोई बुकिंग (Booking) नहीं थी इसलिए वह भी मेरी साथ आने को राजी हो गए।
उमेंदेर जी प्राइवेट टूर (Private Tours) भी करवाते है। आप उमेंदेर जी साथ केदारनाथ, तुंगनाथ,देवरिया ताल ,पंच केदार (Kedharnath,Tungnath,Deoria tal,panch kedar) आदि ट्रेक्स (Treks) कर सकते है।
लेकिन मे्रे लिए बीकानेर (Bikaner) से पंच केदार (Panch Kedar, Kedarnath , Tungnath) करना कोई आसान नहीं था। क्योंकि बीकानेर से उत्तराखंड के लिए अभी कोई भी डायरेक्ट ट्रेन ना होने के कारण यह रास्ता बेहद लंबा और थका देने वाला होने वाला था। लेकिन जब जाना था सो जाना था ।इसीलिए मैंने अपना पूरा मन बना लिया था। केदारनाथ पहुंचने के लिए मुझे सबसे पहले बीकानेर (Bikaner) से जयपुर (Jaipur) और जयपुर से हरिद्वार (Haridwar) जाना था और हरिद्वार से मुझे कैसे भी करके गुप्तकाशी (Guptkashi) पहुंचना था। पढ़ने में यह जितना शॉट (Sort) लग रहा है वास्तव में यह रास्ता इतना शॉर्ट था नहीं, तो शुरुआत होती है मेरे बीकानेर से जयपुर जाने के साथ से।
जैसे ही मुझे मालूम चला कि उत्तराखंड में घुसने के साथ ही मेरा कोविड-19 की रिपोर्ट जगह--जगह मांगी जाएगी, मैंने कोविड-19 का टेस्ट कराने का निश्चय किया और जैसे ही दिमाग में कोविड-19 के टेस्ट का आईडिया मेरे दिमाग में आया, मे्रे दिमाग में ढेर सारे सवाल खलबली मचाने लग गए।
वास्तव में मुझे अपनी बारे में ज्यादा चिंता नहीं हो रही थी,मुझे चिंता हो रही थी कि अगर मेरी कोविड-19 रिपोर्ट पॉजिटिव आती है तो मेरा टूबर तो कैंसिल होगा सो होगा ही, उसका मुझे इतना ज्यादा दुख नहीं हो रहा था, जो चिंता करने वाली बात थी कि मेरी फैमिली भी मेरे वजह से परेशान (Suffer) होगी। मेरी वाइफ (Wife) मेरे छोटे बच्चे (Kids) मेरी मम्मी (Mummy) और मेरे घर में मेरी बुआ (Bhua) जी। फाइनली (Finally) में बीकानेर की एक सरकारी हॉस्पिटल(Government Hospital) में गया अपना सैंपल (Sample) देने के लिए। सैंपल लेने के बाद डॉक्टर (Doctor) ने मुझसे बोला की अब आप 10 – 12 hrs का wait करो। आप का जो भी रिजल्ट होगा आप के मोबाइल नंबर पर आप को पता चल जायेगा। (kedarnath Yatra)
बीकानेर में कोई भी प्राइवेट क्लीनिक कोविड-19 की जाँच करने के लिए अधिकृत ना होने के कारण मेरे पास सरकारी अस्पताल में जांच कराने के अलावा कोई दूसरा विकल्प भी नहीं था। जहां तक मैंने सुना था या पढ़ा था कि प्राइवेट क्लीनिक वाले 2500 INR फी लेते है। लेकिन प्राइवेट क्लिनिक वाले आप को Covid की रिपोर्ट आपको 8-10 hours में देते हैं, वही गवर्नमेंट हॉस्पिटल में यह report 2 – 3 दिन के बाद आती थी । इसीलिए मैंने अभी अपने जयपुर की टिकट होल्ड कर ली और इंतजार करने लगा अपनी कोविड-19 रिपोर्ट आने का।
3 दिनों के बाद मेरी कोविद की रिपोर्ट नेगिटिव आ गई और यह मैसेज मेरे मोबाइल पर आया । और वह पढ़ कर मुझे इतनी खुशी हुई कि मैं यहां बयान नहीं कर सकता।
3 दिन से जो एक कशमकश दिमाग में चल रही थी वह एकदम से समाप्त हो गई और दिमाग शांत हो गया अब मुझे जाना था,अपने सरकारी हॉस्पिटल में उस रिपोर्ट की फिजिकल कॉपी लेने के लिए। क्योंकि हर जगह वह मुझे दिखानी थी। तो मैं तुरंत हॉस्पिटल की ओर भागा और वहां से मैंने कोविड-19 की रिपोर्ट प्राप्त की और उसमें टाइम और डेट भी मैंने दर्ज करवा ली । रिपोर्ट लेने के बाद मैं सीधा बस की टिकट बुक कराने के लिए एजेंट के पास में गया और अगले दिन सुबह की मैंने जयपुर की एक सीट बुक करवा ली ।
इसके बाद मुझे मालूम चला कि चार धाम यात्रा के लिए उत्तराखंड सरकार ने e-Pass की सुविधा भी चालू की है, जो कि सब के लिए compulsory भी है। यह एक बहुत ही सरल सी प्रक्रिया है जिसमें आपकी कुछ बेसिक जानकारी, आपका एक पहचान पत्र (Photo ID) की फोटो और अगर आप उत्तराखंड (Uttrakhand)से बाहर के हैं ,तो आपको अपनी कोविड-19 (Coivd -19) की negitive रिपोर्ट upload करनी होती थी, और submit के साथ में ही आप e-pass download कर सकते हो। अपना e-Pass डाउनलोड करने के साथ साथ ही मेरा पेपर वर्क (Paper Work) लगभग खत्म हो गया ।
Bikaner to Haridwar Via Jaipur
अब समय आ गया बिकानेर (Bikaner) को अलविदा कहने का, next morning में मेरी 8:00 am की बस थी, जयपुर के लिए। Next Morning मैं आधा घंटा पहले बस स्टैंड पहुंच गया और अपनी सीट पर आराम से लेट गया, बस थोड़ी लेट हुई और 9:00 बजे बस रवाना हुई, और तकरीबन 2:00 बजे में जयपुर में पोलो विक्ट्री (Polo Victory) पर उतर गय। खाना खाकर मैं अपने रूम में आ गया और सो गया। आज जयपुर का मौसम बहुत ही गर्म था ,और करीब 12:00 बजे मुझे जून-जुलाई की गर्मी का एहसास हो रहा था। मैंने महालक्ष्मी ट्रैवल से हरिद्वार के लिए एक स्लिपर सीटबुक करवा ली।
यह बस रात को 8:00 बजे जयपुर(Jaipur)से रवाना होती है,और तकरीबन (Approx)12-12:30 घंटे बाद आपको यह हरिद्वार(Haridwar)में “हर की पौड़ी” (Har Ki Pauri) के पार्किंग में Drop कर देती है। लेकिन महालक्ष्मी (Mahalaxmi)वालों के सर्विस एकदम बेकार थी। बिना वजह उन्होंने बस को 2 घंटे रोक कर रखी और उसका हमें कोई कारण नहीं बताया गया। जब हमने ड्राइवर (Driver) को कई बार पूछा तो बोला सेठ जी ने बोला है 2 घंटे बाद बस चलाना।
हम लोग सुबह 10:00 बजे हर की पौड़ी (Har Ki Pauri) के पार्किंग में पहुंचे। वैसे हर की पौड़ी के आस पास कई होटल्स(Hotels),गेस्ट हाउस (Guest House)और धर्मशाला (Dharamshala)है। लेकिंग अकेला (Solo)होने के कारण मुझे कही भी कोई कमरा नहीं मिला,थक हार कर मैं अपने समाज की बनी एक धर्मशाला में चला गया जो कि दुधारी चौक पर थी ।
Day 1:-
धर्मशाला में आकर में फ्रेश हुआ और अपने पेट की जलती हुई अग्नि को शांत करने लिए में हरी की पौड़ी चला आया। हर की पौड़ी में खाने के लिए आप के पास कई Optionsहै , मैंने पंडित भोजनालय में आलू की सब्जी और पूरी खाई लेकिन मज़ा नहीं आया। कोरोना (Covid-19)के कारण लगभग 80% बाजार बंद थे और जो अच्छी होटल्स थी वह भी बंद थी।
होटल में मुझे पता चला की रेलवे स्टेशन के पास से प्राइवेट बस जाती है जो मुझे sari village ड्राप करती हुआ जाएगी। जब में रेलवे स्टेशन के पंहुचा तो मुझे पता चला की आज कोई बस नहीं है, अगली बस जो थी वह कल सुबह 3:30 a.m.पर थी जो मुझे Sari Village शाम (Evening) तक उतार देती। लेकिन मेरा एक और दिन हरिद्वार में रुकने का बिलकुल भी नहीं था। काफी देर तक इधर उधर भटकने के बाद आखिर कार मुझे एक Tata Sumo खड़ी हुई नज़र आई , उसके ड्राइवर से जब पूछा तो उन्होंने बताया की वह Sari Village ही जा रहे है और मुझे वह Sari ड्राप कर देंगे। इसके लिए उन्होंने मेरे से 1500 INR मांगे, मरता क्या ना करता।
मेरा सारा सामान धर्मशाला में ही था और हमारा रूट भी एक ही था तो में कैब में बैठ गया। मैंने ड्राइवर से बोल दिया था की मुझे अपना बैग लेना है। उन्होंने बोलै ठीक है लेकिन जल्दी आ जाना।
मैंने धर्मशाला पंहुचा और चेकआउट किया और कैब में चला गया। गोवेर्मेंट की गाइडलाइन्स के हिसाब से सभी बस, कैब में उनके क्षमता से आधी ही सवारी ले सकते है।
ड्राइवर ने बताया की हमको रात को लेट होने वाली थी ,उन्होंने मुझे suggest किया के में उखीमठ में नाईट स्टे (Night Stay) कर लूँ। उन्होंने अपने एक फ्रेंड (Friend) का नंबर दिया जिनका उखीमठ (Ukhimath) में एक गेस्ट हाउस (Guest House)था। मैंने गेस्ट हाउस में बात की,उन्होंने बोला की रूम उपलब्ध (available)है, तब जा कर मेरे जान में जान आई।
हरिद्वार से Sari Village का रास्ता एक दम हरा भरा था , पुरे रास्ते में हमे कई नदियां,सुन्दर झरने और सुन्दर पहाड़ नज़र आये। अभी उत्तराखंड में चार धाम परियोजना का काम जोरों पर था , पूरा रास्ता टुटा हुआ था। लेकिन अच्छा है आने वाले सालो में चार धाम यात्रा और सरल हो जायगी।यह सुन्दर नज़ारे देखते देखते कब 8 घंटे निकल गए, पता भी नहीं चला ।
शाम को में Sari Village पहुंचा और अपने गेस्ट हाउस (Krishna Lodge) चला गया। गेस्ट हाउस ओनर (Owner) मेरा इंतज़ार ही कर रहे थे। गेस्ट हाउस में अपना सामान रखने के बाद में कुछ खाने चला गया। बहुत ही बेसिक से कमरे के मैंने 1000 INR दिए। गेस्ट हाउस के पास ही फ्रेंड्स होटल (Friends Hotel) नाम का एक छोटा सा रेस्टुरेंट (Restaurant) था, वहीं पर मैंने दाल चावल (50 INR) खाये और रूम पर आ कर सो गया। में इस कदर थक्का हुआ था , कब बिस्तर कर गिरते ही नींद आ गई पता ही नहीं चला।
Day 2:-
आज मैं सुबह थोड़ा लेट उठा क्योंकि 2 दिन के बस की थकान थी उसने के बाद में सबसे पहले फ्रेंड्स होटल गया और वहां चाय और टोस्ट मैंने खाया जिसका मैंने ₹50 Pay किया. उसके बाद Luckily मुझे एक खाली बस मिल गई जो कि हरिद्वार जा रही थी और मेरा मन था प्रसिद्ध धारा देवी माता का दर्शन करने का जो रुद्रप्रयाग से करीब 14- 15 किलोमीटर दूरी पर है, मैं उस बस में बैठ गया और तकरीबन आधे घंटे बाद उस बस वाले ने मुझे एकदम धारी देवी मंदिर के गेट के बाहर छोड़ दिया.
कोरोना (Covid) के कारण अभी उत्तराखंड में सभी किराये लगभग दुगने (Double) हो चुके हैं। तो मैंने 14 किलोमीटर के लोकल बस में 50 INR दिए। उसके बाद में धारी देवी मंदिर(Dhari Devi Temple) में चला गया। धारी देवी मंदिर काफी नीचे बना हुआ है, और तकरीबन 300 मीटर पानी के अंदर है। आपको एक लंबा पुल (Bridge) पार कर के अंदर जाना होता है। मजे की बात यह है कि इतने बड़े प्रसिद्ध मंदिर (Famous Temple) में मेरे अलावा कोई दूसरा वहां नहीं था.कोरोना (Corona) का असर पर भी साफ साफ दिखाई दे रहा था। थोड़ा समय वहां व्यतीत (Spend) करने के बाद मैंने वहां पूजा-अर्चना की और माता रानी के दर्शन किए और उनकी फोटोस (Photos) लेकर में वापस बाहर आ गया।
बाहर आने के बाद मुझे काफी देर इंतजार करना पड़ा ,क्योंकि रुद्रप्रयाग के लिए कोई बस वहां से नहीं थी। तकरीबन पौने घंटे (45 Minutes) बाद मुझे एक Cab वाला दिखा, जिस ने गाड़ी रोकी और वह मुझे रुद्रप्रयाग छोड़ने के लिए तैयार हो गया। उसने मुझसे 100 INR लिए। रुद्रप्रयाग (Rudraprayag) उतरने के बाद में एटीएम (ATM) गया और वहां से मैंने कुछ कैश (Cash) विड्रोल(withdrawal) किया। वापसी में आते आते मुझे वाला एक और Cab वाला मिला और वह उखीमठ जा रहा था। मैंने उसे बोला 5 मिनट Wait करो,मैं अभी आता हूं, और मैं फटाफट Lodge में गया वहां से अपना language लेकर cab मे आ गया। उसके 100 INR में मुझे उखीमठ (Ukhimath) छोड़ (Drop) दिया, और वहां से मुझे दूसरी Cab मिली जिसने मुझे तकरीबन आधा घंटा में Sarri Village छोड़ दिया और इसके की इसके लिए मैंने उसे 150 INR दिये। जैसे ही मैं Sarri Village पहुंचा मुझे उमेंद्र जी (Umender Ji) सामने ही खड़े नजर आ गए। उमेंदेर जी एक छोटा सा रेस्टोरेंट (Restaurant) चलाते हैं और अभी सीजन (season) ना होने के कारण वह गाइड (Tour Guide) का काम भी करते हैं। उमेंद्र जी का एक छोटा सा गेस्ट हाउस (Guest House) भी है, तो उन्होंने मुझे वहीं पर एक कमरा दे दिया, और मैं आराम करने लगा। थोड़ी देर बाद उमेंदेर जी चाय ले आए और खाने में उन्होंने दाल भात बनाया था। तो वहीं मैंने खा लिया. बातों बातों में उनके मुंह से निकला कि देवरिया ताल (Deoria Tal) यहां से 2.5 किलोमीटर दूर है, बस फिर क्या था मुझे तो जाना ही था.
माँ धारी का यह मंदिर माँ काली (Maa Kali ) की समर्पित (dedicated) है। लोकल्स (Locals) के अनुसार माँ धारी देवी(Maa Dhari Devi) की मूर्ति दिन में तीन बार अपना रूप बदलती है। सुबह के समय माँ की मूर्ति में एक युवा लड़की के आभा नज़र आती है और दोपहर होते होते यह आभा महिला के आभा में और शाम तक एक बुढ़िया के रूप में नज़र आती है। माँ धारी की चार धामों का रक्षक देवी (protector of the Char Dhams) के रूप में भी माना जाता है।
एक पौराणिक कहानी के अनुसार एक बार भीषण बाढ़ (cloudburst) से मंदिर पूर्ण रूप से नष्ट हो गया था और और माँ धारी की मूर्ति पानी के साथ बह कर एक चट्टान के पास आ कर रूक गई और गावों वालों ने इस मूर्त्ति से विलाप की आवाज सुनी तो वह लोग इस मूर्ति के पास गई। कहा जाता है की उन सभी गावों वालों को माता ने निर्देश दिया की इस मूर्ति को वही पर स्थापित कर दिया जाये।
किंवदंती के अनुसार, 16 जून 2013 में माँ की मूर्ति (idol) को अपने निज स्थान (mool sthan) से पुजारियों और स्थानीय लोगों द्वारा हटा दी गई था। मूर्ति को अपने स्थान से हटाने का कारण 330 मेगावाट की एक हाइडल परियोजना (330 MW hydel project) के लिए रास्ता बनाना , बताया जाता है। लेकिन जैसे ही माँ की मूर्ति को अपने स्थान से हटाया गया , उसका दुष्पाणिनाम पूरी दुनिया ने बाढ़(cloudburst) के रूप में देखा और आज यह खंडहर पड़ा है।
देवरिया ताल ट्रेक (Deoria Tal Trek)
खाना खाने के बाद हम तैयार हुए अपने ट्रेक(Trek) के लिए। मैं फटाफट तैयार हुआ और उमेंदेर जी के साथ देओरिए ताल (Deoria Tal) के लिए निकल गय। बारिश भी हो रही थी जिसके कारण गिरे हुए पत्ते और घास गीली हो गई थी,जिसके कारण पूरा रास्ता एक दम चिकना और फिसलन (slippery) भरा हो रखा था,और आज मैं वुडलैंड (woodland) के जूते पहन के आया था जो इस कंडीशन (condition) के लिए बिल्कुल उपयुक्त (suitable) नहीं थे।
तकरीबन 1 घंटे के ट्रैकिंग (trekking) के बाद हम लोग देवरिया ताल पहुंचे और मुझे देख बड़ा अफ़सोस हुआ की इतनी सुंदर जगह कोई भी नहीं था। सिर्फ मैं और एक फॉरेस्ट ऑफिसर (forest officer) इसके अलावा पूरे ताल पर कोई भी बंदा (nobody) नहीं था। मैंने वहां तकरीबन आधा घंटा बीताये और कुछ सुंदर फोटोस (photos) लिए और मिडवे (Midway) में मैग्गी (Meggie) और चाय पी। मुझे अब नीचे उतरने के में सबसे बड़ी दिक्कत हो रही थी। मेरे जूते ने मुझे पुरे रस्ते में परेशान किया। उमेंदेर जी ने बताया कि उनका एक दोस्त है जो ट्रैकिंग गियर्स कीराये (trekking gear on rent) पर देता है, तो हम लोग उनसे ट्रेकिंग शूज रेंट पर लेने वाले थे।
नीचे पहुंचते ही मैंने सबसे पहले वही काम किया कि अपने लिए एक उपयुक्त ट्रैकिंग शूज मैंने ले लिए। उमेंदेर जी की होटल के पास ही उनके फ्रेंड की दुकान थी। जो ट्रैकिंग शूज रेंट पर दिया करता था वहां जाकर मैंने अपने लिए उपयुक्त जूते लिए और 200 INR हर दिन के हिसाब से रेंट तय हुआ.थोड़ी देर बाद उमेंदेर जी मेरे लिए एगकरी (Egg Curry) ,चपाती (chapati) और चाय बना दी।
9:00 बजे खा पी के में अपने कमरे में आ गया और कल के लिए तैयारी करने लगा कल हमारा केदार नाथ (Kedarnath) ट्रेक था और सके लिए हमें 6:00 बजे सुबह जाना था।
देवरिया ताल (इतिहास) - Deoria Tal History
देवरिया ताल ट्रैक एक moderate difficulty level वाला ट्रेक है।यह ट्रैक पूरा हरे-भरे जंगल (lush green) से गिरा हुआ है। पूरे रास्ते में आपको इतनी जबरदस्त हरियाली देखने को मिलेगी कि मानो आप ही स्वर्ग में आ गए है। यह ट्रैक(Trek) लगभग पक्का बना हुआ है। जब आप ट्रैक पर चढ़ाई शुरू करते हैं, तब आपको जो ध्यान रखने वाली बात हैं कि,आपके पास में यह पर्याप्त पानी हो, क्योकि रास्ते में कोई पानी के लिए आपको स्थान नहीं मिलेगा। आप के जो जूते हैं वह ट्रेकिंग के लिए उपयुक्त हो , क्योंकि यहां पर बारिश होती रहती है और बारिश के साथ में ही पूरे रास्ते में जो पेड़ों से गिरे हुए पत्ते होते हैं ,वह ऐसी फिसलन पैदा करते हैं कि वहां बिना अच्छे ट्रैकिंग जूतों (Trekking Shoes) के चलना लगभग मुश्किल है। इस ट्रक में मैंने भी यह गलती की थी ,कि ट्रैकिंग शूज ना ले जाकर। मैंने वहां वुडलैंड के नार्मल जूते पहन रखे थे और ट्रेक से उतरते समय में तकरीबन 100 बार गिरा होगा। तो आप यह ध्यान रखिए कि आपके पास में एक अच्छे ट्रैकिंग शूज होने चाहिए । यह ट्रैक तकरीबन 3 Km.का है ,और काफी ही सुंदर है। रास्ते में आपको कुछ छोटी-छोटी दुकानें मिलेंगे जहाँ से आप कुछ स्नैक्स (snacks) ले सकते हैं।
बाकी इस ट्रक को ज्यादा करने को या देखने को है नहीं जब आप ऊपर पहुंच जाते हैं तो एक बहुत ही सुंदर सी लेक आपका इंतजार कर रही होती है यह है देवरिया ताल झील।
देवरिया ताल रुद्रप्रयाग से 49 km की दूरी पर Sari Village के अंदर बनी हुई है। यह जेल हरे-भरे जंगलों से घिरी हुई एक शानदार लेक है। इस झील के जल में गंगोत्री (gangotri) , बद्रीनाथ (badrinath), केदारनाथ (Kedarnath) , यमुनोत्री (yamunotri) और नीलकंठ (Neelkhanth) की चोटियों का जो एक प्रतिबिंब (reflection) नजर आता है वह देख कर आप का मन मोहित हो जाता है। इसीलिए सुन्दर और अद्भुत दर्शय को देखने के लिए लोग इस झील पर आते हैं ।
इस झील के बारे में जो किवदंती हैं उनके अनुसार कहा जाता है ,कि इस झील में देवता लोग स्नान करते थे ,और पुराणों में इसे ‘इंद्र सरोवर’ (indra sarovar) के नाम से भी बताया गया है। ऋषि मुनियों का मानना है कि ‘यक्ष’ ने पांडवों से उनके वनवास काल के दौरान सवाल किए थे और जो पृथ्वी में छुपे हुए प्राकृतिक खजानों और वृक्षों की जड़ों का रखवाला है, इसी झील में रहता था।
शाम तक हम लोग वापस उमेंदेर जी के गेस्ट हाउस आ गए । कल हमें बाबा केदार (Baba Kedarnath) के दरबार में जाता था और सुबह जल्दी भी उठना था। गोरीकुंड (GoriKund) तक जाने के लिए हमे उमेंदेर जी के बाइक (Bike) को चुना। Sari Village से गौरीकुंड का बाइक से तकरीबन 2 hrs का रास्ता था।
Day 3:-
सारी विलेज से बाबा केदारनाथ - सारी विलेज वापिसी
Sari Village to Kedarnath - Sari Village
आज हम बात करेंगे सारी विलेज से केदार और केदार से सारी विलेज की ।हम लोग सुबह करीब 5:30 बजे उठे, नहा धो कर चाय पी और उमेंद्र की बाइक पर हम लोग निकल पड़े केदार(Kedar)की यात्रा के लिए ।सारी से सोनप्रयाग (Sonprayag) की दूरी तकरीबन 50 किलोमीटर की है और इससे तय करने में मैं 3 घंटे से ऊपर का समय लग गया। रास्ता बहुत ही खराब और टेढ़ा मेढ़ा होने के कारण हमें कई जगह रुकना पड़ता। कई जगह पथरों को हटाया जा रहा था और पहाड़ों को तोड़ा जा रहा था जिसके कारण कुछ कुछ जगहों पर रास्ता अवरुद्ध (Block) कर दिया गया था। तो कुल मिलाकर हम 3 घंटे बाद सोनप्रयाग पहुंचे। जहां से आगे आप अपने पर्सनल वाहन (personal vehicle) से नहीं जा सकते , इसे आगे आगे जाने के लिए शेयर टैक्सी (Share Taxi) करनी पड़ेगी। हमने बाइक (Bike) को पार्किंग (Parking) में लगा दिया इसका चार्ज 24 घंटे के लिए 50INR और उसके बाद 30 INR प्रतिदिन (Daily) का था।
पार्किंग में बाइक लगाने के बाद हमें अपना ट्रेवल पास (E-Pass) verify करवाना था , यह E-Pass मैं अपने घर से ही बनवा के लाया था। लेकिन उसकी एंट्री (Entry) यहां करानी अनिवार्य है, इसके अलावा यहां लोकल (Local) जो किसी को लेकर केदारनाथ की यात्रा पर जा रहा है उसका पंजीकरण (registration) भी अनिवार्य था। बस दोनों में फर्क था कि उत्तराखंड से बाहर से जो यात्री यहां घूमने आया है । उसको Covid Negitive की रिपोर्ट दिखानी होती है,और लोकल के लिए इस प्रकार का कोई भी प्रावधान नहीं था। मैंने अपनी एंट्री पंजीकरण कार्यालय में करवाई और वहां इंतजार कर रही है कैब में बैठ गया। Corona की वजह से लगभग सभी जगह का टूरिज्म (tourism) खत्म सा है और सोशल डिस्टेंसिंग (social distancing) के कारण जो वहां चल रहे हैं वाहनों की कैपेसिटी (capacity) आधी कर दी गई है, इसके कारण सारे यात्री भाड़े दुगुने (Double) हो चुके हैं। तकरीबन 20 मिनट के सफर के बाद हम लोग गौरीकुंड (Gourikund) पहुंचे, वहां हमारा ही epass चेक किया गया और कोरोना की सर्टिफिकेट (Certificate) भी देखा गया।
फिर हम लोग तकरीबन 11:00 बजे हमने चढ़ाई शुरू की, हम थोड़ा लेट हो गए थे और धूप बहुत तेज हो चुकी थी। इसके कारण चढ़ने में काफी हमें दिक्कत आ रही थी। 2013 की आपदा के बाद यह जो नया मार्ग (New Route) केदारनाथ (Kedarnath) के लिए बनाया गया था वह बहुत ही जटिल (Hard) और सीधी चढ़ाई वाला होने के कारण यात्रियों को चढ़ाई में बहुत परेशानी (difficulty) हो रही थी। लेकिन सरकार ने अपने हिसाब से काफी अच्छे इंतजाम किए हुए थे, रास्ते में आने वाले लगभग 95% दुकानें बंद थी। रस्ते में कुछ एक लोकल ढाबा खुले हुई मिले जहां हल्का-फुल्का खा सकते हैं, इसके अलावा सब कुछ बंद था। रास्ता बहुत ही सुंदर था पूरे रास्ते आपको कई झरने और छोटे-मोटे वाटर स्ट्रीम्स(Water Streams) देखने को मिल जाएगी, जहां पर आप नहा सकते हैं या थोड़ी देर बैठ कर सुस्ता सकते हैं। जैसे-जैसे दिन चढ़ता गया धूप और तेज होती गई और हमारा चल पाना और मुश्किल होता गया। हम थोड़ी थोड़ी देर में रुकते, कहीं लेमन वाटर(Lemon Water) या कहीं लस्सी (Lassi) पी कर थोड़ा रेस्ट करते और आगे चलते। कहीं हम मैगी खाते तो कहीं बैठकर फोटो खींचते।
इस प्रकार चलते चलते तकरीबन 7:3० बज गए। 8:00 बजे हम लोग बेस कैंप (Base Camp) पहुंचे और अब हम दोनों लोग एक दम थक चुके थे और आगे जाने की बिल्कुल हमारे अंदर कैपेसिटी (capacity) नहीं थी। तो हमने बेस कैंप में ही एक डॉरमॅटरी (dormitory) बुक कर ली जिसका किराया 800 INR था। वहां कोई ज्यादा सुविधाएं नहीं थी लेकिन हमारे पास दूसरा कोई विकलप (Option) भी नहीं था। रात को ठंडी बहुत ज्यादा हो गई थी। भगवान के दर्शन करने का सुबह को फाइनल (Final) किया। मैं सुबह तकरीबन 5:30 बजे उठ गया और नहा धोकर उमेंद्र को भी उठा दिया। हम निकल पड़े बाबा केदार के दर्शन करने के लिए। बेस कैंप से केदार मंदिर का दूरी तकरीबन 2 किलोमीटर की है। लेकिन यह रास्ता एक दम समतल था तो चलने में कोई परेशानी नहीं हुई। हम लोग तकरीबन 6:15 बजे वहां पहुंच गए।
तब तक मंदिर के पट (Gate) बंद थे। हमने थोड़ी फोटोग्राफी (Photography) की और तब तक पट खुल गए। लेकिन किसी भी भक्त को मंदिर के अंदर प्रवेश करना मना था। इसके लिए मंदिर प्रशासन ने एक विशेष व्यवस्था की थी, उन्होंने मेन गेट के बाहर एक लकड़ी का स्टेज बना दिया था, जिसपर आप खड़े होकर भगवान के दर्शन कर सकते हैं,वहां भक्त बहुत कम थे तो कही भी लाइन नहीं थी।
केदारनाथ धाम का इतिहास - Kedarnath Temple History
हम बात करते हैं केदारनाथ धाम के इतिहास के बारे में,
केदारनाथ मंदिर जो बना हुआ है वह तीन तरफ से पहाड़ियों से गिरा हुआ, और एक तरफ से करीब 22000 फ़ीट ऊंचा, दूसरी तरफ से 21600 फ़ीट और तीसरी तरफ से 22700 फ़ीट ऊंचा है। केदारनाथ में तीन पहाड़ों का ही नहीं बल्कि पांच नदियों का संगम भी है। यहां पर मंदाकिनी, मधुगंगा, क्षीरगंगा, सरस्वती और स्वर्णगौरी नदियों का संगम होता है। हालांकि इनमें से अब कुछ नदियां अस्तित्व में नहीं है लेकिन अलकनंदा की सहायक नदी मंदाकिनी आज भी यहां मौजूद है। जैसा कि हम सबको पता है केदारनाथ मंदिर का शिवलिंग 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है और केदार ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से समस्त पापों से मुक्ति मिल जाती है।
पुराणों के आधार पुराणों के अनुसार :-
मौजूदा केदारनाथ मंदिर के पीछे एक मंदिर पांडवों ने बनाया था, लेकिन वह समय की मार ना झेल सका और नष्ट हो गया उसके बाद में आठवीं शताब्दी में आदिशंकराचार्य जी ने एक मंदिर का निर्माण कराया और वह एक छोटे हिमयुग के कारण 400 वर्षों तक बर्फ के नीचे दबा रहा
भैरव नाथ के दर्शन - Bhairavnath ke Darsha
मैंने अपने परिवारवालों (family members) को वीडियो (Video Calling) कॉल के माध्यम से भगवान के दर्शन करवा दिए। करीब 2 घंटे वहां घूमने -फिरने,फोटोग्राफी करने और सभी मित्र जनों को वीडियो कॉल के द्वारा दर्शन कराने के बाद हम निकल पड़े भैरवनाथ (Bhairavnath) के मंदिर की और। केदार मंदिर से थोड़ी दूरी पर था बाबा भैरव का मंदिर, लेकिन इस इसकी चढ़ाई खड़ी थी तो चढ़ना मुश्किल थी। लेकिन कहा जाता है कि अगर आप केदार आये हैं और भैरव का दर्शन नहीं करते तो आपको यात्रा का फल नहीं मिलता। जब हम इतनी तकलीफ उठा कर यहां आए हैं तो यात्रा का फल तो पूरा ही चाहिए था। इसीलिए हम भगवान भैरवनाथ के लिए रवाना हुए। तकरीबन 20 मिनट बाद हम ऊपर भगवान भैरव की कुटिया पहुंचे। जहां वातावरण एक दम शांत और ऊंचाई पर होने के कारण पूरी केदारघाटी बहुत साफ नजर आ रही थी। वहां पर भी हमने पूजा की।
नीचे उतरते समय उमेंदेर जी ने बताया की ,थोड़ी ही दूरी पर भारतीय वायु सेना (Indian Air Force) का एक MIG क्रैश हुआ था,और उसका गार्बेज उधर ही पड़ा है। तो हम लोगों उसे देखने चल पड़े। इससे पहले ऐसा ही एक ग्रेव्यार्ड मैंने बैंकॉक में भी देखा था। उसके वीडियो का लिंक यह है। “बैंकाक एयरप्लेन ग्रेवयार्ड “। वहां ग्रेव्यार्ड कुछ फोटो खींचने के बाद हम लोग रवाना हुए नीचे उतरने के लिए। लेकिन समय की कमी के कारण हमने निश्चित किया कि हम पोन्नी कर लेंगे। वहां पोन्नी राइड की फीस 1150 ₹प्रति व्यक्ति थी, तो हमने दो पोन्नी कर लिए ,और उस घोड़े वाले ने तकरीबन 2 घंटे में हमें गौरीकुंड छोड़ दिया। रास्ता बहुत खराब था कई जगह हमारा पोन्नी स्लिप होता होता बचा। हम पुरे रास्ते भगवान केदार को याद करते हुए आए फाइनली हम लोग नीचे उतरे और पूजा जी (मेरे पोन्नी का नाम था ) जिस पर चढ़ कर में सुरक्षित नीचे आया था उसके साथ फोटो लिया। नीचे आने के बाद आने के बाद हमने फिर से एक शेयरिंग टैक्सी ली और और हम सोनप्रयाग पहुंचे। सोनप्रयाग में हमारी बाइक पार्किंग में खड़ी थी,तो हम अपनी बाइक पर रवाना हुए सारी विलेज के लिए। तकरीबन साढे़ 3 घंटे की राइड के बाद हम लोग 6:00 बजे सारी विलेज पहुंचे। रास्ता बहुत ही गंदा और उबड़ खाबड़ था फिर भी हम लोग सुरक्षित सारी विलेज पहुंच गए। यह सभी कृपा बाबा केदार और भैरोनाथ की आशीर्वाद था।
Day 4:-
चोपता,चंद्रशिला,तुंगनाथ ट्रेक (Chopta,Chandrashila,Tungnath Trek)
आज मेरा सारी विलेज में आखिरी दिन (Last Day) था और आज का प्रोग्राम (Plan) था चंद्रशिला (chandrashila),चोपता(chopta ) ,तुंगनाथ (tungnath) की ट्रैकिंग (Trekking) पर जाने का।आज भी में कल की भांति सुबह 6:00 बजे उठ गया और उमेंद्र के साथ बाइक से निकल पड़े। पूरा रास्ता हरा भरा और शानदार लग रहा था। सुबह गुलाबी गुलाबी ठंड भी थी। थोड़ी देर बाद हम चोपता पहुंचे जहां हमने थोड़ा स्टे (Stay) किया और हल्का फुल्का नाश्ता किया। चोपता बहुत ही सुंदर पहाड़ी से दिखने वाली एक घाटी(Valley) है,जहां से आप पूरे वैली का शानदार व्यू देख सकते हैं।
थोड़ी देर रुकने के बाद हम लोग सीधा तुंगनाथ (Tungnath) की चढ़ाई के लिए रवाना हो गए। थोड़ी देर बाद हम तुंगनाथ के प्रवेश द्वार (entrance gate) पर पहुंचे और वहां हमने अपनी बाइक पार्क कर दी। तुंगनाथ करीब 3.50 किलोमीटर का ट्रेक है जो चोपता से 2700 मीटर की ऊंचाई पर है। सर्दियों (Winters) में यहां अच्छी खासी बर्फ़बारी(Showfall) होती है, जिससे यह ऐसा दिखता है जैसे मानो परियों का एक सुंदर सा देश(FairyLand) हो। यह ट्रैक जंगल से होता हुआ गुजरता है शुरुआत में यह ट्रैक पूरा पक्का बना हुआ है, लेकिन ऊपर जाने के बाद यह ट्रैक पहाड़ों से होकर गुजरता हुआ कच्चा और पथरीला हो जाता है। तुंगनाथ का ट्रेक मॉडरेट डिफीकल्टी लेवल (moderate difficulty level) वाला ट्रक है और इसे आप आराम से पार कर सकते हैं। इस ट्रैक पर भी मुझे बहुत कम ही लोग मिले। यहां पर भी कोरोनावायरस (Corona Virus) का असर साफ साफ देखने को मिल रहा था। बीच में कुछ छोटी-छोटी दुकानें बनी हुई थी जहां पर आप अपने पेट की अग्नि को शांत कर सकते थे।
हम भी एक दो जगहों पर रुके कर लस्सी और चाय पी। इसी प्रकार चलते चलते हम लोग तुंगनाथ के मंदिर पर पहुंचे। तुंगनाथ के मंदिर से पहले एक बहुत ही सुंदर छोटा सा गणेश जी का मंदिर भी आता है।
जब हम ऊपर मंदिर में पहुंचे तो हमने पता चला की तुंगनाथ मंदिर में कुछ कंस्ट्रक्शन वर्क (construction work) चल रहा था। जिसके कारण रास्ता पूरा खराब हो चुका था और उप्पर पहुंचते ही वहां जबरदस्त बारिश भी शुरू हो गई। इसीलिए हम लोग कुछ देर वहां रुक गए और बारिश के बंद होने का इंतजार करने लगे। थोड़ी देर बाद जब बारिश बंद हुई तब हमने मंदिर के दर्शन किये और आसपास में कुछ फोटोग्राफी की। वहां पर हमे कुछ दिल्ली से और कुछ साउथ से आए हुए लोग भी मिले जिनके साथ हमने थोड़ी देर चैटिंग (Chatting) की।
तुंगनाथ मंदिर का इतिहास :- Tungnath History
आओ दोस्तों अब आप को बताता हूँ तुंगनाथ मंदिर के इतिहास (Tungnath History) के बारे में ,
तुंगनाथ मंदिर दुनिया का सबसे ऊंचाई पर स्थित मंदिर है। यह पंच्च केदार (Panch Kedar) में से एक केदार है और इसकी समुंदर तल ऊंचाई लगभग 3,680 मीटर है। कहा जाता है की यह मंदिर 1000 वर्षों पुराना है और यह मंदिर करीब 100 वर्षों तक बर्फ में दबा रहा था लेकिन मंदिर को कुछ भी नुक्सान नहीं हुआ।
तुंगनाथ मंदिर का निर्माण पांडवों (pandavas) द्वारा करवाया गया था। कहा जाता है कि जब महाभारत युद्ध (mahabharat) में पांडव ने कौरवों (kauravas) का वध करते हुए युद्ध जीत गए थे, तब उनको ब्रहम हत्या (Brahma Hatya) का दोष लगा था और शिवजी (Shiva) उनसे बहुत नाराज थे। इस दोष से पांडवों को भगवन शिव ही बचा सकते थे और व्यास ऋषि (vyas rishi) की सलाह (advice) पांडव शिवजी को ढूंढने के लिए निकले। भगवन शिव को यह पता चल गया और वह उनसे नहीं मिलना चाहते थे और पांडवों से बचने के लिए शिवजी ने अपने आप को भैंसे (buffalo) में परिवर्तित कर लिया था , इसीलिए शिव को महेश (Mahesh) नाम से भी जाना जाता है, लेकिन पांडव कहाँ मानने वाले थे ,उन्होंने शिवजी का पीछा किया और इस प्रकार शिव जी ने अपने शरीर को 5 अलग-अलग स्थानों पर छोड़ दिए। यह सभी स्थान पंच केदार कहलाए। तुंगनाथ में भगवान शिव का हाथ (बाहु) स्थापित है।
तुंगनाथ से चंद्रशिला ट्रेक:-Tungnath to Chandrashila Trek
चंद्रशिला पीक जाने के लिए आप को तुंगनाथ मंदिर से ही गुजरना होता है , तुंगनाथ से चंद्रशिला के दुरी तकरीबन 1.5 किलोमीटर की है और रास्ता खड़ी चढ़ाई वाला है । यह दूरी को 1 घंटे में आसानी से पूरी की जा सकती है। चंद्रशिला में एक छोटा सा मंदिर है।
मंदिर के पीछे आप सफ़ेद बर्फ से घिरी घाटी का शानदार नज़ारा देख सकते है। चंद्रशिला की ऊँचाई 4000 मीटर है इस लिए आप को यहाँ पर AMS (Acute Mountain Sickness) के लक्षण देखने को मिल सकते है। इस लिए आप रस्ते में पर्यापत मात्रा में पानी लेकर चले और थोड़ा थोड़ा पानी पीते रहे।
कहा जाता है की जब श्री राम ने रावण का वध किया तो राम का मन अशांत हो गया था और इस अशांत को शांत करने की लिए राम ने चंद्रशिला की चोटी पर भगवान शिव की आराधना की थी।
यह था मेरे केदारनाथ , तुंगनाथ का सफरनामा,
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1 comment
very nice and detailed blog . thanks for sharing